भारत और बांग्लादेश में साल 2100 तक करीब 12 करोड़ लोग होंगे Climate Refugees

भारत और बांग्लादेश में साल 2100 तक करीब 12 करोड़ लोग होंगे Climate Refugees

आईसीटी पोस्ट पर्यावरण संरक्षण ब्यूरो

क्या आप जानते हैं कि हर साल लाखों लोगों को बदलते मौसम की वजह से अपना घऱ-बार छोड़कर दूसरे जगहों पर जाना पड़ता है? ऐसे लोगों को जलवायु शरणार्थी Climate refugees कहा जाता है.
जर्मनवाच की वार्षिक रैंकिंग-ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में भारत को जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित शीर्ष 10 देशों में रखा गया है.

Climate refugees शब्द सबसे पहले मौसम संबंधी आपदाओं के कारण बड़े पैमाने पर लोगों के प्रवास और अपना देश छोड़कर जाने वाले लोगों के लिए गढ़ा गया. Institute for Economics and Peace (IEP) के मुताबिक जलवायु संकट साल 2050 तक दुनिया भर में1.2 अरब लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर कर सकता है.

भारत की 8000 कि.मी. लम्बी समुद्री सीमा में नौ राज्य और द्वीपों के दो समूह आते हैं. वास्तव में वैश्विक तापमान वृद्धि से समुद्र का स्तर बढ़ गया है जिसके कारण समुद्री तट के किनारे बसने वाली भारत की 25 प्रतिशत आबादी के लिए चुनौतियां खड़ी हो गईं हैं. भारत में अभी तक उड़ीसा, प.बंगाल के सुंदरबन के अनजान गांवों के ही निवासी समुद्र का जलस्तर बढ़ने की वजह से जलवायु शरणार्थी हो रहे थे. आने वाले वर्षों में मुंबई, चेन्नई और अन्य बड़े समुद्र तटीय शहरों में इनकी समस्या शुरू हो चुकी है.
समुद्र के बढ़ते जलस्तर से लोगों को मजबूरन खारा पानी पीना पड़ेगा जिससे तटीय इलाकों में रह रही गर्भवती महिलाओं में गर्भपात की संख्या बढ़ जाएगी. ब्रिटिश वैज्ञानिकों के एक दल जिसने बांग्लादेश में तटीय गर्भवती महिलाओं पर बढ़ते समुद्री जलस्तर के प्रभाव का सर्वेक्षण किया है, का कहना है कि भारत में परिस्थितियां इससे भिन्न नहीं होंगी.

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र समिति का कहना है ‘बढ़ते जलस्तर से एशिया और अफ्रीका के सर्वाधिक घने बसे तटीय शहर प्रभावित होगें जिनमें मुंबई, चेन्नई एवं कोलकाता भी शामिल हैं. हिमालय और हिन्दुकुश श्रृंखला के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. समिति के अनुसार भारत में 2.4 मि.मी. प्रतिवर्ष के हिसाब से समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा जो कि 2050 में कुल 40 सेमी हो जाएगा. परिणामस्वरूप भारत के तटीय इलाकों में रहने वाले 5 लाख लोग तत्काल प्रभावित होंगे तथा सुंदरबन सहित तटीय इलाकों के पानी में खारापन भी बढ़ जाएगा.

भारत में लाखों लोग समुद्रतट से 50 कि.मी. की परिधि में रहते हैं. समुद्रतट से 10 मीटर तक की ऊँचाई वाला इलाका ‘निम्न ऊँचाई समुद्री क्षेत्र’ कहलाता है. यह सबसे पहले डूबेगा. इससे भारत का 6000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जाएगा. हमारे अध्ययन के मुताबिक, समुद्री जलस्तर बढ़ने से भारत और बांग्लादेश में सन् 2100 तक करीब 12 करोड़ लोग बेघर हो जाएंगे.

हमारे अध्ययन के मुताबिक, समुद्री जलस्तर बढ़ने से भारत और बांग्लादेश में सन् 2100 तक करीब 12 करोड़ लोग बेघर हो जाएंगे.

जलवायु शरणार्थियों की समस्या से निपटने में चुनौतियाँ

  • अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मान्यता का अभाव: जलवायु शरणार्थियों को न तो स्पष्ट रूप से एक श्रेणी के रूप में परिभाषित किया गया है और न ही शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित 1951 के कन्वेंशन (1951 शरणार्थी सम्मेलन) में इसे शामिल किया गया है.
  • अचानक आई प्राकृतिक आपदाएं जैसे चक्रवात, बाढ़ आदि से प्रभावित लोगों की पहचान आसान होती है. वहीं दूसरी तरफ, सूखा, भूमि क्षरण, जल संकट जैसी प्रक्रियाएं जो जलवायु परिवर्तन की वजह से जन्म लेती हैं, काफी धीमी होती हैं, परिणामस्वरूप प्रभावित लोगों की पहचान करके उनको राहत दिलाना काफी मुश्किल होता है.
  • किसी अजनबी या अनजान व्यक्ति को लेकर भय या घृणा व्याप्त होने की प्रवृत्ति (Xenophobia) ने भी जलवायु शरणार्थियों की समस्या को मुश्किल बना दिया है.
    भारत के सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं. उदाहरण के तौर पर, भारत में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन की विभीषिका के समय, लाभार्थियों को जरूरी सामाजिक सुरक्षा नहीं मुहैया करा पाता.

क्या किया जाना चाहिए
जलवायु परिवर्तन की वजह से विस्थापित हुए जलवायु शरणार्थियों की पहचान करने और उनकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक वैचारिक ढांचा (conceptual framework) विकसित किया जाना चाहिए.
जलवायु परिवर्तन से जुड़े निम्नलिखित उपायों को लागू करते समय सरकारों को अपनी योजना में मानवाधिकार संरक्षण की अवधारणा को शामिल करना चाहिए.
-बड़े पैमाने पर विस्थापन को रोकना.
-अपने ही देश में विस्थापित व्यक्तियों की जरूरतों को पूरा करना.
-पुनर्वास कार्यक्रम.
मानवाधिकार, शरणार्थी कानून, आपदा प्रबंधन और प्रभावितों के विस्थापन से जुड़े सभी कानूनों को समग्रता में लागू किया जाना प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

(अपनी प्रतिकिया हमें इस मेल पर भेजें-editor@ictpost.com)

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