भारतीय शहरों में पर्यावरण तबाह करने वाले विलेन : जानें Particulate Matter और सल्फर डाई ऑक्साइड को

भारतीय शहरों में पर्यावरण तबाह करने वाले विलेन : जानें Particulate Matter और सल्फर डाई ऑक्साइड को

आईसीटी पोस्ट पर्यावरण संरक्षण टीम-

स्विट्जरलैंड के संगठन आइक्यू एयर की रिपोर्ट में साल 2023 में दिल्ली को दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित राजधानी के रूप में बताया गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत लगातार खराब वायु गुणवत्ता की समस्या से जूझ रहा है, जिसमें पीएम 2.5 की सांद्रता डब्ल्यूएचओ के वार्षिक स्तर से 10 गुना से भी अधिक है. पीएम 2.5 रैकिंग के मुताबिक, दिल्ली 2018 से लगातार चौथी बार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में रही है.
यह रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 83 भारत में हैं.

पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) या कण प्रदूषण (particle pollution) क्या होते हैं?
PM को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) या कण प्रदूषण (particle pollution) भी कहा जाता है, जो कि वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है. हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं.
पीएम-1.0:- इसका आकार एक माइक्रोमीटर से कम होता है. ये छोटे पार्टिकल बहुत खतरनाक होते हैं. इनके कण साँस के द्वारा शरीर के अंदर पहुँचकर रक्तकणिकाओं में मिल जाते हैं. इसे पार्टिकुलेट सैंपलर से मापा जाता है.
पीएम-2.5:- इसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है जो मानव बाल के व्यास का लगभग 3% है. ये आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर प्रवेश कर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं. इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर या इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से मापते हैं।
पीएम-10:- इस पार्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रोमीटर से कम होता है. ये भी शरीर के अंदर पहुँचकर बहुत सारी बीमारियाँ फैलाते हैं. इन्हें fine particles भी कहा जाता है. पर्यावरण विशेषज्ञ पीएम 10 को रेस्पायरेबल पर्टिकुलेट मैटर भी कहते हैं.

PM10 और 2.5 धूल, कंस्ट्रक्शन जगहों पर और कूड़ा व पुआल जलाने से अधिक बढ़ता है. हवा में PM2.5 की मात्रा 60 और PM10 की मात्रा 100 होने पर ही हवा को सांस लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है.

पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) के स्रोत
पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकारों के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकता है. स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं. प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं. प्रदूषण का सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकता है. ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं. इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, खेती के दौरान दहन से जुड़े क्रिया कलाप, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण अन्य स्रोत हैं.

जब आप सांस लेते हैं तो PM2.5 और PM10 कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे बढ़ सकते हैं. उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है, इसके परिणामस्वरूप समय से पहले मृत्यु भी हो सकती है. PM2.5 का स्तर ज्यादा होने पर धुंध बढ़ती है और साफ दिखना भी कम हो जाता है.

जहरीली गैस सल्फर डाई ऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत भी भारत
दुनिया भर में, भारत सल्फर डाई ऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक है. दुनिया भर में मानवजनित सल्फर डाई ऑक्साइड का 21 फीसदी उत्सर्जन भारत करता है. साल 2019 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण 16.7 लाख मौतें हुईं, जो भारत में हुई कुल मौतों का 17.8% थी.

SO2 यानी सल्फर डाइ ऑक्साइड वातावरण का प्रदूषण फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा करता है.
भारत के सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का सबसे बड़ा उत्सर्जक होने का प्राथमिक कारण पिछले एक दशक में देश में कोयला आधारित बिजली उत्पादन का विस्तार है. भारत में SO2 का सर्वाधिक उत्सर्जन कोयला आधारित पॉवर प्लांट्स (Thermal Power Plants) द्वारा होता है.

• दुनिया भर में सल्फर डाइऑक्साइड का सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले पांच बड़े शहर हैं-नॉरिलस्क स्मेल्टर कॉम्प्लेक्स (रूस), क्रिएल (दक्षिण अफ्रीका), जाग्रोज (ईरान), राबिघ (सऊदी अरब), सिंगरौली (भारत).

• भारत में प्रमुख SO2 उत्सर्जन हॉटस्पॉट मध्य प्रदेश में सिंगरौली; तमिलनाडु में नेवेली और चेन्नई; ओडिशा में तलचर एवं झारसुगुड़ा; छत्तीसगढ़ में कोरबा; गुजरात में कच्छ; तेलंगाना में रामागुंडम तथा महाराष्ट्र में चंद्रपुर एवं कोराडी हैं.

वायुमंडल में SO2 का सबसे बड़ा स्रोत बिजली संयंत्रों और अन्य औद्योगिक सुविधाओं द्वारा जीवाश्म ईंधन का जलना है. SO2 उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में शामिल हैं: औद्योगिक प्रक्रियाएं जैसे अयस्क से धातु निकालना; ज्वालामुखी जैसे प्राकृतिक स्रोत; और लोकोमोटिव, जहाज और अन्य वाहन और भारी उपकरण जो उच्च सल्फर सामग्री के साथ ईंधन जलाते हैं. भारत में अधिकांश बिजली संयंत्रों में फ्लू-गैस डिसल्फराइज़ेशन तकनीक (Flue-Gas Desulphurisation-FGD) का अभाव है. इस वजह से भी सल्फर डाइऑक्साइड का प्रदूषण फैलाने में भारत का योगदान अधिक है.

SO2 इंसान की सांस लेने वाली प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है. अस्थमा से पीड़ित लोग, विशेषकर बच्चे, SO2 के प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं.

SO2 का उत्सर्जन, आम तौर पर अन्य सल्फर ऑक्साइड (SOx) का निर्माण भी करता है. एसओएक्स छोटे कणों को बनाने के लिए वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है. ये कण पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) प्रदूषण में योगदान करते हैं. छोटे कण फेफड़ों में गहराई से प्रवेश कर सकते हैं और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.
अधिक मात्रा होने पर, गैसीय SOx पत्तियों को नुकसान पहुंचाकर और वृद्धि को कम करके पेड़ों और पौधों को नुकसान पहुंचाता है. SO2 और अन्य सल्फर ऑक्साइड अम्लीय वर्षा में योगदान करते हैं जो संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र के लिए काफी हानिकारक हैं.

आज का क्विज़
National Air Quality Index क्या है? इसमें वायु गुणवत्ता को किन प्रदूषकों के आधार पर मापते हैं.
राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक National Air Quality Index को आम आदमी के लिए अपने आस-पास की हवा की गुणवत्ता का परख करने के लिए ‘एक नंबर – एक रंग – एक विवरण’ (One Number – One Color -One Description) की रूपरेखा के साथ 2014 में शुरू किया गया. वायु गुणवत्ता का मापन आठ प्रदूषकों पर आधारित है- पार्टिकुलेट मैटर (PM10), पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), ओजोन (O3), अमोनिया (NH3), और लेड (Pb).

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