कैसे रखी गई जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीन थैरेपी की नींव — जेनेटिक इंजीनियरिंग में पहला प्रयोग

कैसे रखी गई जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीन थैरेपी की नींव — जेनेटिक इंजीनियरिंग में पहला प्रयोग

आईसीटी पोस्ट हेल्थ टीम

साल 1969 में वैज्ञानिक हरबर्ट बायर ने विशेष रूप से उपयोगी गुणों वाले ई. कोलाई जीवाणु के कुछ restriction enzymes पर अध्ययन किया. बॉयर ने देखा कि इन एंजाइमों में एक खास तरीके से डीएनए स्ट्रैंड को काटने की क्षमता होती है जिससे स्ट्रैंड पर ‘चिपचिपा सिरा’ बन जाता है. आणविक कैंची कहे जाने वाले इन एंजाइम की मदद से डीएनए को खास जगहों से काटना संभव हो सका.

70 के दशक में वैज्ञानिक स्टैनले कोहेन प्लाज्मिड पर अध्ययन कर रहे थे. ये प्लाज्मिड कुछ खास जीवाणुओं के कोशिकाद्रव्य में खुले तौर पर तैरते रहते हैं. कोहेन ने इन प्लाज्मिड को कोशिका से निकालने और फिर दूसरे कोशिकाओं में डालने का तरीका विकसित किया. (प्लाज्मिड बैक्टीरिया और अन्य कोशिकाओं में पाया जाने वाला circular डीएनए होता है. इसमें खुद ही अपनी संख्या बढ़ाने की क्षमता होती है.)
इन दोनों निष्कर्षों का इस्तेमाल करके बायर और कोहेन ने मिलकर डीएनए के खंडों को मनचाहे विन्यास में जोड़ने और किसी दूसरे जीवाणु कोशिका में इसे डालने में सफलता हासिल की. यह सफलता बायोटेक्नोलॉजी का आधार बनी जिससे जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीन थैरेपी की नींव रखी गई.

रेकॉम्बीनैंट डीएनए या आर-डीएनए (recombinant DNA or r-DNA) टेक्नोलॉजी क्या है?

रेकॉम्बीनैंट डीएनए या आर-डीएनए तकनीक में आनुवंशिक पदार्थों DNA तथा RNA के रसायन में बदलाव करके उसे host organism में प्रवेश कराया जाता है. इससे इनके लक्षणों में परिवर्तन आ जाता है.
इस प्रक्रिया में जीनोम में DNA संरचना के एक बाहरी टुकड़े को प्रवेश कराया जाता है जिसमें रुचि के अनुसार हमारे जीन शामिल होते हैं. जिस जीन को प्रवेश कराया जाता है उसको रेकॉम्बीनैंट जीन कहते हैं और इस तकनीक को रेकॉम्बीनैंट DNA टेक्नोलॉजी कहा जाता है.

पहले रेकॉम्बीनैंट DNA का निर्माण साल्मोनेला टाइफीमूरियम के प्लाज्मिड में Antibiotic Resistance Encryption जीन के जुड़ने से हो सका था. स्टेनले कोहेन और रोबर्ट बॉयर ने यह काम 1972 में प्लाज्मिड से DNA का टुकड़ा काट कर किया था. आर्थर कोर्नबर्ग ने सबसे पहले DNA को अंत: पात्र (In Vitro) में बनाया था.

रेकॉम्बीनैंट DNA टेक्नोलॉजी के tools
प्रतिबंधन एंजाइम (Restriction Enzyme)- इसे आणविक कैंची भी कहा जाता है जो DNA को कुछ खास जगहों पर काटने में मदद करता है.

लाइगेज (ligases) नामक एंजाइम प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन (Antibiotic Resistance Gene) को दूसरे जीन के साथ जोड़ने का कार्य करता है. इस जुड़ाव से अंत: पात्र (In Vitro) में नए डीएनए का निर्माण होता है जो खुद ही अपने जैसा आकृति बनाने की क्षमता रखता है जिसे रेकॉम्बीनैंट डीएनए कहते हैं.
Restriction Enzyme डीएनए को काटता है जबकि Ligases गोंद की तरह काम करते हुए कटे हुए डीएनए को फिर से जोड़ता है.

प्रतिबंधन एंजाइम आम तौर पर एंजाइम के एक बड़े वर्ग के तहत रखे जाते हैं, जिनको न्यूक्लियसेस (Nucleases) कहते हैं. ये दो प्रकार के होते हैं: एंडोन्यूक्लियसेस (Endonucleases) और एक्सोन्यूक्लियसेस (Exonucleases). एंडोन्यूक्लियसेस DNA स्ट्रैंड के भीतर ही काटता है जबकि एक्सोन्यूक्लियसेस स्ट्रैंड्स के अंत या आखिरी हिस्से से न्यूक्लियोटाइड को हटा देते हैं.

  • प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लियसेस खास क्रम वाले (sequence-specific) होते हैं जो आमतौर पर पैलिंड्रोम अनुक्रम (palindrome sequences) होते हैं और विशिष्ट बिंदुओं पर DNA को काटते हैं. वे DNA की लंबाई की जांच करते हैं और प्रतिबंधन साइट नामक विशिष्ट साइट पर कटौती करते हैं. इस तरह चिपचिपा वाले आखरी हिस्से का जन्म होता है. वांछित जीन और वेक्टरों को चिपचिपा जैसा प्राप्त करने के लिए प्रतिबंधन एंजाइमों द्वारा काटा जाता है, इस प्रकार से वेक्टर और जीन को बांधने के लिए लाइगेज का काम आसान हो जाता है.
  • वेक्टर- वांछित जीन को ले जाने और एकीकृत करने में मदद करता है. ये पुनः संयोजन DNA तकनीक के उपकरणों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा हैं क्योंकि वे अंतिम वाहन हैं जो मेजबान जीव में वांछित जीन को आगे ले जाते हैं. प्लास्मिड्स (Plasmids) और बैक्टीरियोफेज (bacteriophages) ऐसे वेक्टर हैं जिनका उपयोग रेकॉम्बीनैंट डीएनए टेक्नोलॉजी में सबसे अधिक किया जाता है.

जीव के आनुवंशिक रूपांतरण में तीन चरणों का इस्तेमाल होता है:

  • जीन वाले DNA की पहचान
  • दिए गए DNA को जीव में ले जाना
  • इस DNA को जीव में सुरक्षित रखना और फिर उसकी संतति में स्थानांतरित करना.

रेकॉम्बीनैंट DNA टेक्नोलॉजी का उपयोग

  • फसलों को पैदा करने में आनुवंशिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर रोग एवं कीटों के प्रति प्रतिरोधी फसलों को प्राप्त किया जा सकता है. खाद्य पदार्थों के न्यूट्रिशन को बढ़ाया जा सकता है.
  • इस तकनीक के इस्तेमाल से बीटी कॉटन का निर्माण किया जा सकता है जिससे पौधों की रक्षा कीटों या बॉल वर्म्स (ball worms) से की जा सकती है. बॉल वर्म कपास की खेती को नुकसान पहुंचाने वाले कीट होते हैं.
  • इस तकनीक से न केवल जीनों के स्वरूपों में संशोधन करके जीवों के आकार और गुणों में बदलाव किया जा सकता है, बल्कि इससे एकदम नए जीव का निर्माण भी संभव है.
  • इंसान के आनुवंशिक रोगों के उपचार में बड़ी मदद मिल सकती है. समस्या उत्पन्न करने वाले जीन का सटीक पता चलने पर उसे दूर किया जा सकता है.
  • आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग पशुपालन में करके विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्में एवं वांछित गुणों को प्राप्त किया जा सकता है और कई रोगों को भी दूर किया जा सकता है.
  • दवाओं में रेकॉम्बीनैंट डीएनए टेक्नोलॉजी का उपयोग करके इंसुलिन का उत्पादन किया जा सकता है.
  • ELISA (Enzyme-linked immunosorbent assay) प्रयोगशाला में किया जाने वाला एक तरह का रक्त परीक्षण है जो कि रक्त में एंटीबॉडीज का पता लगाने में किया जाता है. ELISA में रेकॉम्बीनैंट तकनीक का उपयोग किया जाता है. ELISA का उपयोग किसी व्यक्ति में HIV का पता लगाने के लिए भी किया जाता है.

‘McrBC-एक आणविक कैंची और जटिल बैक्टीरियल प्रोटीन’
पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science Education and Research- IISER) ने ‘McrBC की परमाणु संरचना’ पर अध्ययन किया है. McrBC एक जटिल बैक्टीरियल प्रोटीन (Bacterial Protein) है जो जीवाणु कोशिका में वायरल संक्रमण को रोकने में मदद करता है. McrBC एक आणविक कैंची (Molecular Scissors) के रूप में कार्य करता है. McrBC की संरचना के निर्धारण में ’फेज थेरेपी’ (Phage Therapy’) की मदद ली गई है. इसका उपयोग भविष्य में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से निपटने में किया जा सकता है.

फेज (Phages) वायरस के समूह होते हैं जो बैक्टीरिया की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं तथा नष्ट कर देते हैं. फेज थेरेपी के तहत बैक्टीरियल संक्रमणों के इलाज के लिए बैक्टीरियोफेज का चिकित्सीय इस्तेमाल किया जाता है.

प्रश्न- निम्नलिखित कथन और कारण पर विचार करें और सही विकल्प का चुनाव करें.:
A: कथन और कारण दोनों सत्य हैं और कारण, कथन की सही व्याख्या है.
B: कथन और कारण दोनों सही हैं लेकिन कारण कथन की सही व्याख्या नहीं करता है.
C: कथन सत्य है लेकिन कारण असत्य है.
D: कथन असत्य है लेकिन कारण सत्य है.
कथन: जेनेटिक इंजीनियरिंग को रेकॉम्बीनैंट डीएनए तकनीक भी कहा जाता है.
कारण: यह एक जीव के आनुवंशिक बनावट में सुधार लाता है.

उत्तर- विकल्प B सही है.
कथन में रेकॉम्बीनैंट तकनीक की बात है लेकिन कारण सही होने के बावजूद तकनीक पर चर्चा नहीं करता है. इसलिए कथन और कारण दोनों सही हैं लेकिन कारण कथन की सही व्याख्या नहीं करता है.

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