आईसीटी पोस्ट साइंस टीम:
आठ अप्रैल, 2024 को नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक पीटर हिग्स का 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उन्हें गॉड पार्टिकल की खोज के लिए जाना जाता है, जिसने यह समझाने में मदद की थी कि बिग बैंग के बाद सृष्टि की रचना कैसे हुई। हिग्स-बोसोन सिद्धांत के लिए उन्हें संयुक्त रूप से भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था. इस लेख में हम पीटर हिग्स की खोज को समझने की कोशिश करेंगे.
(Prof. Peter Higgs)
हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल क्या है
वर्ष 1960 में जब कण भौतिकी का मॉडल विकसित किया जा रहा था तो एक समस्या खड़ी हो गई. सिद्धांत के मुताबिक सभी कणों में वजन या mass नहीं होना था. लेकिन उस स्थिति में वे प्रकाश की गति से चलते थे और किसी ठोस पदार्थ का गठन नहीं होता था. इसलिए एक नए तरह के कण की आवश्यकता थी जो सभी कणों को द्रव्यमान देता हो और जिससे ब्रह्मांड का गठन होता. वह नया कण बोसोन था. इसका नाम एडिनबर्ग के पीटर हिग्स के नाम पर हिग्स बोसोन रखा गया. और आखिरकार जुलाई, 2012 में सर्न के विशाल प्रयोग लॉर्ज हैड्रॉन कोलाइडर – एलएचसी में हिग्स बोसोन की पुष्टि की गई.
हमारे ब्रह्मांड में मौजूद सभी चीजें ऐटम से मिलकर बनी हैं. एक ऐटम इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन नाम के तीन कणों से बना होता है. ये कण भी सबऐटॉमिक पार्टिकल से मिलकर बने होते हैं जिनको क्वार्क कहा जाता है. इन कणों का द्रव्यमान अब तक रहस्य बना रहा है. प्रोटॉन और न्यूट्रॉन जैसे कणों में द्रव्यमान यानी वजन होता है जबकि फोटॉन में नहीं होता है.
यह एक पहेली थी कि आखिर कुछ कणों में वजन होता है जबकि कुछ में नहीं. इस पहेली को सुलझाया हिग्स ने
आखिर ऐसा क्यों होता है, इस गुत्थी को साल 2012 में सुलझाने की कोशिश की गई जिसे हिग्स बोसोन का सिद्धांत नाम दिया गया. इसके मुताबिक, बिग बैंग के तुरंत बाद किसी भी कण में कोई वजन नहीं था. जब ब्रह्मांड ठंडा हुआ और तापमान एक निश्चित सीमा के नीचे गिरता चला गया तो शक्ति की एक फील्ड पूरे ब्रह्मांड में बनती चली गई. उसे हिग्स फील्ड के नाम से जाना गया. उन फील्ड्स के बीच कुछ कण थे जिनको हिग्स बोसोन के नाम से जाना गया. इस सिद्धांत के मुताबिक, जब कोई कण हिग्स फील्ड के प्रभाव में आता है तो हिग्स बोसोन के माध्यम से उसमें वजन आ जाता है.
जो कण सबसे ज्यादा प्रभाव में आता है, उसमें सबसे ज्यादा वजन होता है और जो प्रभाव में नहीं आता है, उसमें वजन नहीं होता है. यदि हिग्स क्षेत्र मौजूद नहीं होता, तो कणों में एक दूसरे को आकर्षित करने के लिए आवश्यक वजन नहीं होता, और वे प्रकाश की गति से स्वतंत्र रूप से तैरते.
जुलाई 2012 में स्विटजरलैंड में सीईआरएन की प्रयोगशाला में ‘लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी)’ नामक दुनिया का सबसे बड़ा कण त्वरक स्थापित किया गया. प्रयोग के बाद सफलतापूर्वक गॉड पार्टिकल की खोज हुई और पीटर हिग्स के सिद्धांत की पुष्टि की.
हिग्स बोसोन क्यों अहम है?
हमारी इस दुनिया की रचना में भार या द्रव्यमान का खास महत्व है. भार या द्रव्यमान वह चीज है जिसको किसी चीज के अंदर रखा जा सकता है. अगर कोई चीज खाली रहेगी तो उसके परमाणु अंदर घूमते रहेंगे और आपस में जुड़ेंगे नहीं. जब परमाणु आपस में जुड़ेंगे नहीं तो कोई चीज बनेगी नहीं. जब द्रव्यमान आता है तो कण एक-दूसरे से जुड़ते हैं जिससे चीजें बनती हैं. ऐसा मानना है कि इन कणों के आपस में जुड़ने से ही चांद, तारे, आकाशगंगा और हमारे ब्रह्मांड की अन्य चीजों का निर्माण हुआ है.
अगर कण आपस में नहीं मिलते तो इन चीजों का अस्तित्व नहीं होता और कणों को आपस में मिलाने के लिए द्रव्यमान mass जरूरी है.
लीवरपूल यूनिवर्सिटी में पार्टिकल फिजिक्स पढ़ाने वाली प्रोफेसर तारा सियर्स कहती हैं, ‘‘हिग्स बोसोन से कणों को द्रव्यमान मिलता है. यह सुनने में बिल्कुल सामान्य लगता है. लेकिन अगर कणों में द्रव्यमान नहीं होता तो फिर तारे नहीं बन सकते थे. आकाशगंगाएं न होतीं और परमाणु भी नहीं होते. ब्रह्मांड कुछ और ही होता.’’ इस सिद्धांत के अनुसार हर खाली जगह में एक फील्ड बना हुआ है जिसे हिग्स फील्ड का नाम दिया गया इस फील्ड में कण होते हैं जिन्हें हिग्स बोसोन कहा गया है. जब कणों में द्रव्यमान आता है तो वो एक दूसरे से मिलते हैं.
गॉड पार्टिकल नाम क्यों दिया गया
अमेरिका के एक वैज्ञान लेऑन लीडरमैन ने 1993 में एक पुस्तक लिखी थी. उस पुस्तक में उन्होंने कणों के द्रव्यमान और परमाणु के बनने की प्रक्रिया को समझाया था. उन्होंने किताब का नाम The Goddamn Particle रखा था। लेकिन प्रकाशक को यह नाम पसंद नहीं आया तो उन्होंने इसका नाम बदलकर The God Particle कर दिया. इस तरह से इसको गॉड पार्टिकल कहा जाने लगा। इसका भगवान से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल इंग्लिश के शब्द Goddamn को गुस्सा या चिड़चिड़ाहट व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसी चीज को ध्यान में रखते हुए लीडरमैन ने गॉडडैम का इस्तेमाल किया ताकि वह यह दिखा सके कि इस कण को खोजने में कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा.
हिग्स बोसोन को हमारे ब्रह्मांड की ईट माना गया है और इस ईट के नाम में एक हिस्सा बोसोन सत्येंद्र नाथ के नाम से जुड़ा हुआ है. ब्रह्मांड की बुनियादी इकाई के साथ एक भारतीय का नाम जुड़ना हम सभी के लिए गौरव की बात है.